नई दिल्ली
स्पोर्ट्ज़ विलेज के 13वें वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एएचएस) ने पूरे भारत में स्कूल जाने वाले बच्चों की फिटनेस और सेहत में चिंताजनक अंतर का खुलासा किया है। वर्ष 2010 से हर साल संचालित हो रहे इस सर्वेक्षण का उद्देश्य यह है कि समूचे भारत के स्कूलों में बच्चों के स्वास्थ्य व फिटनेस के स्तर का विश्लेषण और मूल्यांकन किया जाए।
एडुस्पोर्ट्स द्वारा समर्थित इस सर्वेक्षण के 13वें संस्करण में, देश के 85 स्थानों पर 7 से 17 वर्ष की आयु के 1,16,650 बच्चों का मूल्यांकन किया गया, जिसके तहत स्कूलों में सुगठित शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों की तत्काल जरूरत को हाईलाइट किया गया है।
देश का पूर्वी क्षेत्र अपने कुल 56.40% बच्चों की समग्र फिटनेस प्रदर्शित करते हुए, सेकेंड-बेस्ट बन कर उभरा है, जिसमें शरीर के ऊपरी हिस्से की ताकत (54%), शरीर के निचले हिस्से की ताकत (46%), और लचीलेपन (77%) के मामले में उल्लेखनीय मजबूती नजर आई है।
सर्वेक्षण से उजागर हुआ है कि उत्तरी क्षेत्र में बच्चों के एक बड़े प्रतिशत का प्रदर्शन बेहद दयनीय रहा, जिसमें फिटनेस के सात में से तीन मापदंडों का प्रतिशत सबसे कम दर्ज किया गया। इस क्षेत्र ने शरीर के निचले हिस्से की ताकत (35%), पेट की ताकत (81%), और एनारोबिक क्षमता (58%) के मामले में सबसे लचर प्रदर्शन किया, जो फिटनेस के प्रमुख संकेतकों में सुधार के जरूरी क्षेत्रों को रेखांकित करता है।
दक्षिण क्षेत्र के बच्चों का प्रदर्शन मिला-जुला रहा। बीएमआई (60.12%), एरोबिक क्षमता (31%), एनारोबिक क्षमता (62%), और पेट की ताकत (87%) के मापदंडों में, दक्षिण के बच्चों ने बड़ी संख्या में बढ़िया प्रदर्शन किया है, मगर शरीर के ऊपरी हिस्से की ताकत और लचीलेपन के मापदंडों में सुधार की बड़ी गुंजाइश दिखाई दी।
अन्य सभी क्षेत्रों के मुकाबले पश्चिम क्षेत्र ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है, जहाँ शरीर के ऊपरी हिस्से की ताकत (58%) शरीर के निचले हिस्से की ताकत (60%), एनारोबिक क्षमता (81%), पेट की ताकत (93%), एरोबिक क्षमता (52%) और लचीलेपन (81%) के मापदंडों में असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चों का प्रतिशत अधिक है।
सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष बताते हैं:
● 5 में से 2 बच्चों का बीएमआई खराब है।
● 5 में से 3 बच्चों के शरीर में निचले हिस्से की ताकत पर्याप्त नहीं है।
● 3 में से 1 बच्चे में पर्याप्त लचीलापन नहीं है।
● 5 में से 3 बच्चे जरूरी एरोबिक क्षमता पूरी नहीं करते।
● 5 में से 1 बच्चा पेट या कोर की पर्याप्त ताकत नहीं रखता।
● 5 में से 2 बच्चों के पास पर्याप्त एनारोबिक क्षमता नहीं है।
● 5 में से 3 बच्चों के ऊपरी शरीर में पर्याप्त ताकत नहीं है।
● लड़कों (57.09%) की तुलना में लड़कियों (62.23%) का बीएमआई अच्छा है।
● लड़कियों ने लचीलेपन, पेट की ताकत, एनारोबिक क्षमता और शरीर के ऊपरी हिस्से की ताकत के मामले में लड़कों को पछाड़ दिया है, जबकि लड़कों ने एरोबिक क्षमता और शरीर के निचले हिस्से की ताकत के मापदंडों में अच्छा प्रदर्शन किया।
एएचएस 2025 के मुख्य निष्कर्ष
इसके अलावा, शरीर के ऊपरी हिस्से की शक्ति के मापदंड पर, सरकारी स्कूलों के बच्चों की (37%) तुलना में निजी स्कूलों के बच्चों का प्रतिशत बेहतर (47%) है, और पेट की शक्ति के मापदंड पर सरकारी स्कूलों के बच्चों का प्रतिशत 84% है, जबकि निजी स्कूलों के बच्चों का प्रतिशत इससे अधिक 87% रहा। तुलनात्मक रूप से, सरकारी स्कूलों के बच्चों ने बड़ी संख्या में- बीएमआई (61.64%), शरीर के निचले हिस्से की ताकत (48%), एरोबिक क्षमता (37%), एनारोबिक क्षमता (75%) और लचीलेपन (75%) के मापदंडों में बेहतर प्रदर्शन किया, जो निजी स्कूल के बच्चों की तुलना में बेहतर समग्र फिटनेस दिखाता है।
इस सर्वेक्षण ने पी.ई. कक्षाओं की बारंबारता और समग्र फिटनेस स्तरों के सकारात्मक सहसंबंध पर भी प्रकाश डाला है। इसमें पाया गया कि जो बच्चे प्रति सप्ताह पी.ई. की दो से अधिक कक्षाओं में भाग लेते हैं, उनके बीएमआई का स्तर, शरीर के ऊपरी हिस्से की ताकत और लचीलापन, पी.ई. की कम कक्षाओं में भाग लेने वाले बच्चों के मुकाबले बेहतर होता है, जिससे स्कूलों में सुगठित खेल कार्यक्रमों की अहमियत को बल मिलता है।
पी.ई. कक्षाओं की बारंबारता का समग्र फिटनेस पर असर
स्पोर्ट्ज़ विलेज के को-फाउंडर, सीईओ एवं मैनेजिंग डाइरेक्टर सौमिल मजमुदार ने शिक्षा व खेल के बीच संतुलन बनाने के महत्व पर जोर देते हुए कहा: "बच्चों को स्वाभाविक रूप से खेलना पसंद होता है, फिर भी खेल अक्सर शिक्षा से पीछे रह जाते हैं। 13वें एएचएस से निकले निष्कर्ष इस तात्कालिक आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं कि दोनों के बीच संतुलन बनाने की सख्त जरूरत है। स्कूल के लीडरों को चाहिए कि वे शारीरिक शिक्षा और खेल पाठ्यक्रम में निवेश को प्राथमिकता दें- न केवल बच्चों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य एवं कल्याण की दृष्टि से, बल्कि एक ऐसी मजबूत खेल संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए जो भारत को वैश्विक मंच पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने की दिशा में ले जाए।"
स्पोर्ट्ज़ विलेज के को-फाउंडरऔर फाउंडेशन के मुखिया परमिंदर गिल ने नीतिगत समर्थन और सीएसआर-समर्थित उपायों की जरूरत को हाईलाइट करते हुए अपनी बात आगे बढ़ाई: "सरकारी स्कूल के बच्चों का बेहतर फिटनेस स्तर उत्साहजनक है, जिसके दूरगामी लाभ होंगे। खेल न केवल अकादमिक प्रदर्शन को बेहतर बनाते हैं बल्कि सामाजिक-भावनात्मक कौशल को भी मजबूत करते हैं, समावेश को बढ़ावा देते हैं और लैंगिक समानता को प्रोत्साहन देते हैं। इस प्रगति का लाभ उठाने के लिए, मजबूत नीतियाँ लागू करना और ऐसे संसाधन आबंटित करना जरूरी हो जाता है, जो कॉर्पोरेट्स, सीएसआर पहलों, परोपकारियों और सरकार द्वारा समर्थित उच्च गुणवत्ता वाले खेल कार्यक्रमों तक पहुंच सुनिश्चित करते हैं।"
13वें वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण की विस्तृत रिपोर्ट यहां डाउनलोड की जा सकती है।
स्पोर्ट्ज़ विलेज के बारे में
स्पोर्ट्ज़ विलेज भारत का सबसे बड़ा स्कूल खेल संगठन है, जो खेल को बच्चों की शिक्षा एवं विकास का अभिन्न अंग बनाने के लिए समर्पित है। वर्ष 2003 में स्थापित, स्पोर्ट्ज़ विलेज का उद्देश्य यह है कि खेलों को स्कूली पाठ्यक्रमों के साथ एकीकृत करके बच्चों के स्वास्थ्य एवं कल्याण में सुधार किया जाए। चाहे अपने अग्रणी सुसंगठित शारीरिक शिक्षा (पी.ई.) कार्यक्रम एडुस्पोर्ट्स के माध्यम से हो, या सरकारी स्कूलों में अपनी #स्पोर्ट्सफॉरचेंज विकास पहलों के माध्यम से, या पाथवेज़ स्पोर्ट्स एक्सीलेंस प्रोग्राम के माध्यम से हो, स्पोर्ट्ज़ विलेज मैदान के अंदर और बाहर युवा चैंपियन तैयार करने को प्रतिबद्ध है।
वर्तमान में, यह संगठन 22 राज्यों के 500 से अधिक निजी व सरकारी स्कूलों में 300,000 से अधिक बच्चों और युवाओं को लाभ पहुँचा रहा है। आज तक, स्पोर्ट्ज़ विलेज ने पूरे भारत के 66 लाख से अधिक बच्चों को प्रभावित किया है, जो देश में अपनी तरह की यह सबसे बड़ी पहल है।