400 स्लीपर बसों में रोज क्षमता से ज्यादा ढोया जा रहा वजन, सफर करने वालों की जान को खतरा

 इंदौर

हाईवे पर रोज ऐसी यात्री बसें देखी जा सकती हैं, जिनमें सीटिंग और स्लीपर व्यवस्था के साथ बस की छत पर भारी मात्रा में सामान लदा होता है। इससे दुर्घटना की आशंका होती है। मगर अब ओवरलोडेड बसों का यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है।

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है, जिसमें पूरे देश में ओवरलोडेड यात्री बसों का मुद्दा उठाया गया है। कहा गया है कि ओवरलोडेड यात्री बसें न सिर्फ लोगों के जीवन के लिए गंभीर खतरा हैं, बल्कि ये पर्यावरण को भी प्रदूषित करती हैं।

जीएसटी छुपाने से राजस्व का भी नुकसान
बसों पर लदे सामान का जीएसटी छुपाने से राजस्व का भी नुकसान होता है। यह याचिका वकील संगम लाल पांडेय ने दाखिल की है। इसमें केंद्र और सभी राज्यों को पक्षकार बनाया गया है। इंदौर से अन्य शहरों और राज्यों तक जाने वाली 400 स्लीपर बसों में निर्धारित क्षमता से अधिक वजन भरा जा रहा है।

केबिन में भर देते हैं, 40 से 50 टन वजन
बसों की छत और नीचे केबिन में 40 से 45 टन तक वजन भर दिया जाता है। इससे यात्रियों की जान भी जोखिम में रहती है, लेकिन परिवहन और यातायात विभाग की सुस्ती के कारण इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।

बसों पर कार्रवाई नहीं होती
शहर की सड़कों से ये बसें खुलेआम निकलती हैं और गंतव्य तक पहुंचती हैं, लेकिन कहीं भी कार्रवाई नहीं होती है। प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी होने से इंदौर से अन्य राज्यों तक बड़ी मात्रा में सामान भेजा जाता है। यह ट्रांसपोर्ट की अपेक्षा स्लीपर बसों से पहुंचा रहे हैं।

महाराष्ट्र, राजस्थान और यूपी जाने वाली बसों में भरते हैं सामान
इंदौर शहर से प्रतिदिन 200 स्लीपर बसें रवाना होती हैं और 200 आती हैं। इनमें टनों वजन भर दिया जाता है। इंदौर से सर्वाधिक स्लीपर बसें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान जाती हैं। सूत्रों का कहना है उप्र की तरफ जाने वाली बसों में सर्वाधिक सामान भरा जाता है। काटन, किराना, मशीनरी, प्याज आदि का बड़ी मात्रा में परिवहन स्लीपर बसों से किया जाता है। वहीं महंगे आइटम और जल्दी पहुंचने वाले सामान भी इन्हीं से पहुंचाया जा रहा है।

सीट के नीचे बना रखे हैं केबिन
अधिकांश स्लीपर बसों में सीट के नीचे बड़े केबिन बना रखे हैं। इनमें ठूस-ठूस कर लगेज भर देते हैं। बस की छत पर भी सामान रखा जाता है। कई बसें तो यात्रियों से ज्यादा लगेज ढोती हैं। लगेज बस संचालकों की कमाई का हिस्सा बन चुका है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *