सिलिकोसिस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में सभी हितधारकों की जिम्मेदारी तय

दिल्ली, इंदौर, भोपाल

दिनांक 6 अगस्त 2024 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय में सिलिकोसिस पीड़ितों के हक के लिए चल रही एक जनहित याचिका में न्यायालय की युगल पीठ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना भालचन्द्र वारले ने के महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। यह याचिका, क्रमांक 110/2006 सिलिकोसिस पीड़ितों के पुनर्वास, मुआवजा और प्रतिबंधक उपायों को लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय में प्रसार, सिलिकोसिस पीड़ित संघ विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा दायर की गई थी।

इस मामले सिलिकोसिस पीड़ित संघ द्वारा पिछले कई वर्षों से पीड़ितों के हक के लिए संघर्ष किया जा रहा था । संघ, माननीय सर्वोच्च न्यायालय को अध्ययन रिपोर्ट “डेस्टाइंड तो डाइ” और अन्य कई कागजातों के द्वारा लगातार जमीनी हकीकत और सिलिकोसिस पीड़ितों की स्थिति से अवगत कराता रहा है। ज्ञात हो कि इन रिपोर्ट्स के आधार पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सिलिकोसिस पीड़ितों की वास्तविक स्थिति को जानने और राज्य सरकार के दावों की सच्ची जानने के एक कमिटी भी बनाई थी जिसकी रिपोर्ट के आधार पर देश भर के पीड़ितों के हक में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया।

इस मामले में पूर्व में भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कई महत्वपूर्ण अन्तरिम आदेश जारी कर चुका है, जिससे मध्य प्रदेश के सैकड़ो पीड़ित जो कि रोजगार कि तलाश मे पड़ोसी राज्य गुजरात में पलायन कर गए थे और वहाँ पर स्वास्थ्य के लिए खतरनाक फेक्ट्रियों में काम कर सिलिकोसिस से पीड़ित हो गए, के साथ देश भर के पीड़ितों को दिनांक 4 मई 2016 और 23 अगस्त 2016 को दिये गए अन्तरिम आदेशों के तहत मुआवजा दिया गया और इन आदेशों के अनुसार पीड़ितों के सम्पूर्ण पुनर्वास की जिम्मेदारी राज्य सरकार को दी गई थी। परंतु सिलिकोसिस से मृतकों के वारिसों को मुआवजा तो मिल गया लेकिन पीड़ितों व्यापक पुनर्वास अभी तक नहीं हुआ है। सिलिकोसिस पीड़ित संघ ने पिछली सुनवाई में प्रदेश के 1881 सिलिकोसिस पीड़ितों की बात रखी थी।

सिलिकोसिस पीड़ित संघ द्वारा मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के सिलिकोसिस पीड़ितों के साथ साथ उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात के सिलिकोसिस पीड़ितों के की स्थिति भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष रखी और उनके लिए भी संघर्ष किया। कल दिनांक 6 अगस्त 2024 को दिये फैसले के अनुसार सिलिकोसिस पीड़ितों के सम्पूर्ण पुनर्वास, मुआवजा और प्रतिबंधक उपायों को तय करने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और केन्द्रीय व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अधिसूचित किया है।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि उद्योगों को अपने मजदूरों को सिलिकोसिस से बचाने के लिए मानकों का पालन सुनिश्चित करना होगा और मानकों के पालन न करने की स्थिति में ऐसी उद्योगों को बंद करने का निर्णय दिया है। पर्यावरणीय नियमों की पालन की निगरानी नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल को दी गई है और साथ ही नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल को भारत भर में सिलिकोसिस की संभावना वाले उद्योगों के प्रभाव की निगरानी करने के नैये भी निर्देशित किया गया है। फैसले में ट्रायब्यूनल और केंद्रीय व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देशित किया है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्व में दिये सभी निर्देशों का पालना सुनिश्चित करे। इसके अतिरिक्त ऐसे करखानों से सिलिकोसिस के फैलाव को रोकने के लिया नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल को जरूरी अन्य आवश्यक कदम उठाने के लिए निर्देशित किया गया है।

देश भर के सिलिकोसिस पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजे के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को मुआवजा प्रक्रिया की निगरानी करने के लिए निर्देशित किया गया है साथ ही संबन्धित राज्यों के मुख्य सचिव और कर्मचारी राज्य बीमा निगम को निर्देशित किया गया है वे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देशों का पालन करे और मुआवजा प्रक्रिया पूरे समन्वय के बिना देरी के पूर्ण करे। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने रजिस्ट्री विभाग को निर्देशित किया गया है कि इस मामले में संबन्धित राज्यों, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और खान महानिदेशक द्वारा प्रस्तुत सभी रिपोर्ट्स और शपथ पत्र नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल को भेजे जाए।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को भी ग्रीन ट्रायब्यूनल और मानवाधिकार आयोग को इस प्रकरण में सिलिकोसिस पीड़ितों को समय पर न्याय मिल सके इसलिए सहयोग करने के लिए निर्देशित किया है।
सिलिकोसिस पीड़ित संघ माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का स्वागत करता है और उम्मीद करता है कि आदेश के अनुसार जिम्मेदार संस्थाएं और निकाय सिलिकोसिस पीड़ितों के हक में न्यायालय के आदेश का पालन गंभीरता के साथ करेगा जिससे पीड़ितों को न्याय के लिए अब और इंतजार न करना पड़े।

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