
भारत शर्मा
मरने के बाद भी होरी की परेशानियां खत्म होने के नाम नहीं ले रही हैं, उसकी आत्मा बैचेन है। उसे अपनी पत्नी धनिया और बेटे गोबर की चिंता है। पूरी जिंदगी वो अपने परिवार को सुख नहीं दे सका और मरने के बाद उन्हें वसीहत के नाम पर साहूकारों का कर्ज ही देकर आया है। होरी को इस बात का भी मलाल है, उसने जिंदगी भर कभी अपने बच्चों के झूठ नहीं बोला, पर आखिरी वक्त में बोलना पड़ा, वह भी गोदान के लिए। झूठ बोलकर गोबर से एक रुपया लेकर गोदान करने का जो काम उसने किया है, उसका बोझ उसकी आत्मा को भारी कर रहा था। होरी की अंतरात्मा ने कहा, तू पूरी जिंदगी जिन रुढियों के खिलाफ लड़ा, अंत समय में उसी में फंस गया, क्योंकि तू भी स्वर्ग नरक में फेर को मानता था पर दुनिया के सामने नास्तिकता को ढ़ोंग रचता था। तुझ पता था, मरने के बाद तुझे वैतरणी पार करने के लिए गाय की जरुरत है और वो तब तक नहीं आएगी, जब तक तू गोदान नहीं करेगा।
अचानक उसकी आत्मा चेतन अवस्था में लौट आई, लगा लंबे समय से सो रही थी। पास यमदूत खड़े थे, जिनके हाथ में कोड़े थे, नरक का दृष्य वैसा ही था, जैसा होरी ने बृम्हाकुमारी आश्रम वालों के पोस्टर में देखा था, कहीं जीव को तेल में तला जा रहा था, तो कहीं उसे कोड़े मारे जा रहे थे। नरक में तैनात यमदूतों की हरकतें वैसी ही थी, जैसी हमारे यहां पुलिस वालों की होती हैं, वैतरणी के लिए वीआईपी घाट बने थे और यमदूत पैसा लेकर लोगों को वैतरणी पार करा रहे थे। होरी गरीब भी था और वो गोदान करके आया था, उसे पूरा भरोसा था, गाय जरुर आएगी। काफी देर इंतजार करने के बाद भी जब गाय नहीं आई, तो उसे बड़ी चिंता हुई। उसने पास खड़े एक यमदूत से इस बावत पूछताछ की, उसके सुझाव दिया, पैसे दो, तो किसी और की गाय पर बैठाकर वैतरणी पार करा देंगे। होरी ठहरा क्रांतिकारी आदमी, धरती पर भी वह अन्याय के खिलाफ लड़ता रहा था, उसने यहां रिश्वत देने से इनकार कर दिया। होरी और यमदूत के बीच हो रही बहस को यमराज के सुन लिया, तो उस वक्त वहां से गुजर रहे थे, उन्होंने उसे अपने चैंबर में बुला लिया। यमराज को उसने अपनी पूरी कहानी विस्तार से बताई। यमराज साहित्य प्रेमी थे, तो तुरंत पहचान गए, पूछा, तुम प्रेमचंद वाले होरी हो। होरी ने उत्साह में सिर हिलाया, उसे लगा, कि जब यमराज से जान पहचान हो गई है, तो कुछ न कुछ रास्ता तो निकल ही आएगा। यमराज ने कहा, पर तुम तो गोदान के नाम पर पैसा देकर आए हो, वो भी एक रुपया। एक रुपए में कौन सी गाए आती है, हमारे संविधान के हिसाब से गाय दान करना होती है, तब वैतरणी पार होती है, कई लोभी पंडित सही बात नहीं बताते और पैसा ऐंठ लेते हैं। होरी ने बताया, महाराज धरती पर बड़ी उथल पुथल चल रही है, गौ रक्षकों का दल जगह-जगह घूम रहा है, उन्होंने किसी के पास गाय देखी, तो जात धर्म पूछे बिना मारने लगते हैं, गाय लेने वाले पर पुलिस मुकदमे अलग से लगा देती है। होरी ने बताया, वो तो गाय ही देना चाहता था, पर पंडित जी ने लेने से इनकार कर दिया, पैसा देने की सलाह उन्हीं ने दी थी, कहा था गारंटी से वैतरणी पार हो जाएगी।
यमराज ने कहा, ठीक है,पर गाय की कीमत के बराबर पैसा तो देते। होरी ने हाथ जोड़कर कहा, प्रभु, आपसे क्या छुपा है, आप तो मेरी दशा जानते ही हैं यह एक रुपया भी तो मैंने अपने बेटे से झूठ बोलकर लिया है। होरी ने अपनी बात मजबूती से रखते हुए कहा, प्रभु हम तो कथा वाचकों से सुनते आए हैं, दान श्रृद्धा का होता है, उसकी कोई कीमत नहीं होती। यमराज खामोश हो गए, कहने लगे, देख भाई होरी, हमारे हाथ तो कानून से बंधे हैं। तुझे राहत चाहिए, तो भगवान के पास चल, वे ही तेरी मदद कर सकते हैं।
होरी भगवान के पास पहुंचा, उन्होंने सारी कहानी यमराज से सुनी, उसके बाद उन्होंने निर्णय सुनाया, होरी गरीब आदमी है, उसने अपनी औकात से अधिक रुपया गोदान के लिए दिया। उसने अपने परिवार से झूठ बोलकर धर्म की रक्षा की। ऐसे दानी पुरुष यदा कदा ही देखने को मिलते हैं, वरना लोग धरती पर पंडितों को ही चूना लगा देते हैं। हमारा मानना है, कि होरी के मामले को अपवाद स्वरुप लिया जाए, जिससे धरती पर गरीब आदमी की गोदान के लिए प्रेरित हो सके। इसके साथ ही उन्होंने होरी को वैतरणी पार कराने की अनुमति दे दी।
भगवान का फैसला सुन होरी वापस लौट आया, उसे उम्मीद थी, अब तो उसका कल्याण हो ही जाएगा, पर उसकी किस्मत फूटी थी, उसी वक्त यहां फिर कुछ गौ भक्त आ गए। उन्होंने कह दिया, हम भगवान के फैसले को नहीं मानते, गौ माता के साथ होने वाले किसी भी अन्याय को बर्दास्त नहीं किया जाएगा। मामला फिर भगवान के दरबार में पहुंचा, तो होरी के पीछे-पीछे वहीं गौभक्त भी घुस आए और नारे बाजी करने लगे। भगवान के पूछने पर उन्होंने कहा, यह हमारी आस्था का सवाल है। आस्था शब्द सुनते ही भगवान भी खामोश हो गए। उन्होंने होरी को समझाया, भाई तू अपना देख, यहां तो मेरा अस्तित्व भी संकट में आ गया है, आस्था ही नहीं होगी, तो हम कहां होंगे।
तब से परेशान होरी त्रिशंकु बना भटक रहा है, मामला इतना हाईलाईट हो चुका है कि अब यमदूत भी पैसा लेकर वैतरणी पार नहीं करा रहे, भगवान का आदेश हाथ में लिए इस उम्मीद से घूम रहा है, कि किसी न किसी दिन आस्था का सैलाब कम होगा और वैतरणी पार करने की उसकी जुगाड़ लग जाएगी।