मुंबई
बॉलीवुड की दिग्गज एक्ट्रेस जीनत अमान 19 नवंबर को 74 साल की हो गई हैं। एक मॉडल से एक्ट्रेस बनीं जीनत, अपने दौर की सुपरस्टार और सबसे महंगी एक्ट्रेस रही हैं। साल 1970 में फेमिना मिस इंडिया और मिस एशिया पैसिफिक इंटरनेशनल का ताज जीतने वाली जीनत इसी साल ओटीटी पर रिलीज वेब सीरीज 'द रॉयल्स' में नजर आई थीं। फिल्मों से इतर दिग्गज एक्ट्रेस पर्यावरण और जलवायु संकट जैसे मुद्दों पर भी अपनी बेबाक राय रखती हैं। वह कहती हैं कि आज भी कई लोग जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लेते या उसे नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन अब ऐसा करने का समय नहीं बचा है। इसकी मार हमारी हवा, पानी और मौसम, हर जगह दिख रही है।
बीते दिनों भारत मंडपम में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में 70 के दशक की प्रतिष्ठित अभिनेत्री जीनत अमान ने पर्यावरण के मुद्दे पर खुलकर बात की। वह मोबियस फाउंडेशन और वॉर्नर ब्रदर्स डिस्कवरी की 10-एपिसोड वाली डॉक्यूमेंटरी सीरीज 'Embers of Hope: The Fight for Our Future' की नैरेटर हैं। उनका कहना है कि यह सीरीज सिर्फ जानकारी देने वाली फिल्म नहीं, बल्कि सोच बदलने वाला आंदोलन है।
'जलवायु परिवर्तन अब अनदेखा नहीं'
जीनत अमान ने कहा, 'जलवायु संकट कोई दूर की बात नहीं है। इसका असर हमारी रोजमर्रा की जिंदगी- हवा, पानी, तापमान – सब पर दिख रहा है। हिमालय में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और तटीय शहरों को बड़ा खतरा है। गंगोत्री ग्लेशियर हर साल लगभग 18 मीटर पीछे हट रहा है, जबकि वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि 2040 तक मुंबई का करीब 10% हिस्सा समुद्र में डूब सकता है।'
अब दर्शक नहीं, बदलाव में सहभागी बनना होगा
युवाओं को संबोधित करते हुए जीनत आगे कहती हैं, 'सिर्फ देखने से कुछ नहीं होगा। अब वक्त है बदलाव का हिस्सा बनने का। छोटे-छोटे कदम भी बड़ा असर डाल सकते हैं। इसमें पेड़ लगाना, प्लास्टिक का उपयोग कम करना, ऊर्जा बचाना, पर्यावरण-अनुकूल आदतें अपनाना जरूरी है। हमें यह सोचना होगा कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए कैसी दुनिया छोड़ रहे हैं।' अपनी डॉक्यूमेंट्री को लेकर उन्होंने दोहराया कि यह सिर्फ जानकारी देने वाला प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि सोच और व्यवहार बदलने वाला आंदोलन है।
कंपनियों की भी जिम्मेदारी
जीनत अमान ने कहा कि सिर्फ आम लोगों नहीं, बल्कि कंपनियों को भी सस्टेनेबिलिटी को अपनी योजनाओं में शामिल करना चाहिए। इससे ब्रांड पर विश्वास बढ़ता है और नए अवसर भी मिलते हैं। वह कहती हैं, 'जागरूकता ही असली बदलाव ला सकती है। विजुअल मीडियम लोगों को ज्यादा तेजी से प्रभावित करता है, इसलिए ऐसी डॉक्यूमेंट्री जरूरी हैं ताकि हर उम्र के लोग जलवायु संकट की गंभीरता को समझ सकें।'