लकवाग्रस्त मरीज अब सोचते ही चल सकेंगे। कोई भी जरूरी काम कर सकेंगे। दरअसल साइंटिस्टों ने एक ऐसी डिवाइस बनाई, जो दिमाग-रीढ़ की हड्डी के कनेक्शन को जोड़ती है और विचारों को एक्शन में बदलती है। इसे ‘वायरलेस डिजिटल ब्रिज’ नाम दिया गया है।
स्विट्जरलैंड के लुसाने स्थित स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी की टीम ने इस इंटरफेस ब्रिज को तैयार किया है। यह टूट चुकी रीढ़ और दिमाग के बीच के कनेक्शन को फिर जोड़ देता है। ये इलेक्ट्रिक स्विच, टच स्क्रीन की तरह काम करता है, जिसमें संकेत मिलते ही एक्शन होता है। दरअसल दिमाग और रीढ़ के बीच का कनेक्शन जब टूट जाता है तो कोई भी अंग लकवाग्रस्त हो सकता है। इसका प्राकृतिक रूप से से दोबारा जुड़ना मुश्किल है, लेकिन अब यह खोज उन्हें अपने काम करने में मदद करेगी।
40 साल के ओस्कम अपने पैरों पर खड़े हो सके इसे स्विट्जरलैंड की पब्लिक रिसर्च यूनिवर्सिटी EPFL ने तैयार किया है। ये डिजिटल ब्रिज एक ब्रेन-स्पाइन इंटरफेस होता है, जो दिमाग और रीढ़ की हड्डी के बीच खोए हुए कनेक्शन को रीस्टोर करने का काम करता है। आसान शब्दों में कहें तो ये ‘वायरलेस डिजिटल ब्रिज’ डिवाइस लकवाग्रस्त अंग के मूवमेंट को कंट्रोल करने में मदद करता है। इस की मदद से 40 साल के गर्ट-जान ओस्कम, वॉकर के सहारे अपने पैरों पर खड़े हो सके और चल पाए।
12 साल पहले पैरालाइज्ड हुए, अब सोच से ही पैरों को शिफ्ट कर रहे
2011 में नीदरलैंड के गर्ट-जान ओस्कम का एक्सीडेंट हो गया था। उस दौरान वो चीन में रहते थे। हादसे के बाद वो पैरालाइज्ड हो गए थे। उनके पैरों ने काम करना बंद कर दिया था। वो न तो चल पाते थे और न ही खड़े हो पाते थे। अब डिजिटल इम्प्लांट के जरिए वो अपने दिमाग से ही पैरों को शिफ्ट करने का काम कर सकते हैं।
ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस टेक्नोलॉजी की मदद से बनी डिवाइस
EPFL के न्यूरोसाइंस के प्रोफेसर ग्रेगोइरे कोर्टाइन ने बताया, हमने दिमाग और रीढ़ की हड्डी के बीच एक वायरलेस इंटरफेस बनाने के लिए ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) तकनीक का इस्तेमाल किया। ये तकनीक दिमाग के थॉट को एक्शन में बदल देती है। उन्होंने बताया चलने के लिए दिमाग, रीढ़ की हड्डी को कमांड भेजता है लेकिन रीढ़ की हड्डी में चोट लग जाए तो ये कनेक्शन टूट जाता है। वायरलेस डिजिटल ब्रिज डिवाइस इसी कनेक्शन को वापस जोड़ने का काम करती है।