सना
यमन के हूती चरमपंथियों ने अमेरिका के शक्तिशाली ड्रोन MQ-9 को मार गिराया है। लेबनान के चरमपंथी संगठन हिजबुल्लाह से जुड़े मीडिया आउटलेट अल-मायादीन ने बताया है कि अमेरिकी ड्रोन को यमन के पश्चिमी धामर प्रांत में मार गिराया गया। रिपोर्ट में हालांकि यह साफ नहीं किया गया कि अमेरिकी ड्रोन को किसने मार गिराया। अक्टूबर 2023 के बाद यह 16वां अमेरिकी MQ-9 ड्रोन है जिसे यमन में मार गिराया गया है। एक और ड्रोन के गिराए जाने इस अमेरिकी किलर मशीन की क्षमता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
3.2 करोड़ डॉलर है MQ-9 की कीमत
हूतियों ने 3.2 करोड़ डॉलर वाले MQ-9 रीपर ड्रोन को उस समय मार गिराया है, जब अमेरिकी सेना ने पिछले सप्ताह ही यमन में बड़े हमले शुरू किए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश के बाद अमेरिकी सेना ने हूतियों के खिलाफ घातक हमले किए हैं। हालांकि, अमेरिकी सेना ने अभी तक रीपर ड्रोन के गिराए जाने को लेकर कोई बयान नहीं दिया है।
इसी महीने गिराया था एक और ड्रोन
इसी महीने में यह अमेरिकी MQ-9 रीपर ड्रोन के खिलाफ हूतियों की दूसरी सफलता है। मार्च की शुरुआत में हूती चरमपंथियों ने दावा किया था कि उन्होंने पश्चिमी यमन के हुदैदाह जिले के ऊपर एक और अमेरिकी निर्मित एमक्यू-9 को मार गिराया है। हूती सशस्त्र बलों ने एक बयान में कहा था कि उनके हवाई सुरक्षा बलों ने ड्रोन को सफलतापूर्वक निशाना बनाया, जब यह कथित तौर पर यमनी क्षेत्र में अभियान चला रहा था।
अमेरिकी वायु सेना ने तब बताया था कि उसने लाल सागर के ऊपर संचालन करते समय एक एमक्यू-9 रीपर ड्रोन से संपर्क खो दिया था। अमेरिकी अधिकारी के हवाले से अल-अरबिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि एमक्यू-9 ऑपरेशन पोसायडन ऑर्चर के समर्थन में ऑपरेशन कर रहा था। अधिकारी ने घटने कारण और उससे जुड़ी किसी भी कार्रवाई का पता लगाने के लिए आकलन करने की बात कही थी।
भारत के लिए क्यों हैं टेंशन?
यमन में अमेरिकी एमक्यू-9 रीपर ड्रोन का गिरना भारत के लिए भी चिंता की बात है। भारत इस ड्रोन के प्रीडेटर वैरिएंट के लिए अमेरिका के साथ 3.6 अरब डॉलर की डील की है। इस डील के तहत भारत को अमेरिका से 31 एमक्यू-9 रीपर ए (प्रीडेटर) ड्रोन हासिल होने हैं। लेकिन यमन में इन ड्रोन की नाकामी ने सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल यह है कि अगर हूती विद्रोही अपनी हल्की मिसाइल और रॉकेट से इसे मार गिरा रहे हैं तो चीन जैसे मजबूत प्रतिद्वंद्वियों के सामने यह कितना कारगर होगा और क्या भारत को इस पर भरोसा करना चाहिए?