सीहोर जिले की सीमा मेवाड़ा अब दे रही है दूसरों को रोजगार

भोपाल 
मजबूत इरादा हो और कुछ करने की प्रबल इच्छा शक्ति हो, तो मुश्किल राह भी आसान हो जाती है। इसे सीहोर जिले की श्रीमती सीमा मेवाड़ा ने साबित कर दिखाया है। छोटे-से गाँव रामखेड़ी में रहने वाली सीमा कभी खुद सिर्फ एक ग्रहणी थी। दिनभर घर के कामकाज में व्यस्त रहना, परिवार की जिम्मेदारी निभाना, यही इनकी रोजमर्रा की जिंदगी थी। लेकिन कहीं न कहीं उनके मन में कुछ अपना करने का, अपनी पहचान बनाने का जज्बा था। उनके मन में आगे बढ़कर अपने जैसे लोगों को आगे बढ़ाने का एक सपना था। महिलाओं के लिये प्रेरणा बन रही सीहोर जिले के ग्राम रामखेड़ी निवासी श्रीमती मेवाड़ा उन महिलाओं में से एक है, जो वास्तव में कुछ कर दिखाने का हुनर रखती हैं।

श्रीमती मेवाड़ा ने बताया कि मेरा शुरू से यही प्रयास था कि मैं स्वयं का व्यवसाय शुरू करूँ, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से अपने कदम पीछे हटा लेती थीं। श्रीमती मेवाड़ा ने बताया कि मुझे प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण योजना की जानकारी मिली, तो मैंने इसके लिये आवेदन किया। कुछ ही दिनों में मुझे इस योजना के अंतर्गत 3 लाख 40 हजार रुपये का ऋण मिल गया। ऋण मिलने के बाद मैंने अपने परिवार की सहायता से शुरू में छोटे स्तर से अपना नमकीन बनाने का कार्य प्रारंभ कर नमकीन बनाने की एक छोटी-सी यूनिट शुरू की। धीरे-धीरे हमारे द्वारा बनाया जाने वाला नमकीन लोगों को पसंद आने लगा और मेरा व्यवसाय आगे बढ़ने लगा।

श्रीमती मेवाड़ा ने बताया कि शुरूआत में काम मुश्किल था। सीमित संसाधन, कम अनुभव, लेकिन हौसला बुलंद था। परिवार ने भी मेरा पूरा साथ दिया। धीरे-धीरे मेरी मेहनत रंग लाने लगी। मेरा नमकीन का व्यवसाय छोटी दुकानों से बढ़कर थोक नमकीन सप्लाई होने लगी। आज सीमा के वर्कशॉप में मशीनों से नमकीन बनता है और खास बात यह है कि इस काम में 9 लोगों को रोजगार मिल रहा है। जो महिला कभी घर से बाहर निकलने में हिचकती थी, वह आज दूसरों के सपनों को भी पँख दे रही है। सीमा की मासिक आय 20 हजार रुपये तक पहुँच चुकी है और काम लगातार बढ़ रहा है।

सीमा कहती हैं कि अगर महिला काम करने की ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है। हम सिर्फ घर सम्हालने तक सीमित नहीं, बल्कि देश की अर्थ-व्यवस्था सम्हालने में भी पीछे नहीं हैं। श्रीमती मेवाड़ा आज अपने गाँव की ही नहीं, पूरे जिले की प्रेरणा बन चुकी है। उनकी कहानी हमें बताती है कि महिला सशक्तिकरण सिर्फ बड़े शहरों की बात नहीं, गाँव की गलियों से भी क्रांति की शुरूआत होगी।

 

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