- इनपुट साधन सस्ते किए जाए तो C2+50% का एमएसपी कम किया जा सकता है
- एसकेएम ने इनपुट लागत में कमी, जीएसटी समाप्त करने, प्रीपेड बिजली मीटर पर प्रतिबंध लगाने की मांग की
नई दिल्ली। किसान आंदोलन के लेकर चल रहे टकराव के बीच संयुक्त किसान मोर्चा ने केन्द्र सरकार की कड़ी निंदा करते हुए कहा है, कि सरकार एमएसपी के नाम पर लोगों में भ्रम फैला रही है। सरकार को एमएसपी को लीगल गारंटी बनाना चाहिए, जिससे किसानों के साथ हो रही लूट को रोका जा सके। किसान संगठनों का कहना है, कि सरकार सी-2 प्लस 50 फीसदी देने को नामुमकिन बताती है,. पर चुनावी राज्यों में जिन मूल्य़ों की बात चुनावी घोषणा पत्र में कर रही है, वह स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के बराबर ही है।
पत्रकारों से चर्चा करते हुए एसकेएम नेताओं का कहना है, कि भारत सरकार केवल 23 फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करती है और इस मूल्य पर खरीद का आश्वासन नहीं देती है । नतीजा यह है कि धान का एमएसपी 2183 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन इसे बिहार और पूर्वी यूपी में व्यापारियों एवं उनके बिचौलियों द्वारा मात्र 1200- 1400 रुपये प्रति क्विंटल देकर खरीदा जाता है । इसी तरह 2023-24 के लिए गेहूं का एमएसपी 2125 रुपये था, लेकिन बिना सरकारी खरीद वाले क्षेत्रों में इसे 1800 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीदा जा रहा था। इसके अलावा 2 साल पहले मक्के का एमएसपी 1900 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि खुले बाजार में यह 11OO रुपये प्रति क्विंटल पर बिका । यह सरकारी खरीद एजेंसियां और खरीद की कोई कानूनी गारंटी नहीं होने का नतीजा है । एमएसपी न्यूनतम सीमा निर्धारित करता है और बेईमान व्यापारी खरीद मूल्य कम कर देते हैं क्योंकि किसानों के पास भंडारण और बाद में बेचने की क्षमता नहीं होती है। यह फसल कटाई के समय संकटकालीन बिक्री है। ऐसा सभी फसलों के साथ होता है। इसलिए, एसकेएम ने सरकार से, बिहार जहां नीतीश-भाजपा गठबंधन ने उन्हें समाप्त कर दिया है सहित सभी राज्यों में मंडियां स्थापित करने की मांग की है।
एसकेएम नेताओं का कहना है, कि सरकारी खरीद बहुत चयनात्मक है, यूपी में गेहूं का 30% और पंजाब व मध्य प्रदेश को मिला कर 35% गेहूं की पैदावार होती है । लेकिन सरकार 70 फीसदी खरीद सिर्फ पंजाब और मध्य प्रदेश से करती है। सरकारी खरीद अधिकारी असहाय किसानों से 100 रुपये प्रति क्विंटल तक की अवैध वसूली करते हैं और 40 रुपये प्रति क्विंटल की तुलाई की ले लेते है, इस भ्रष्टाचार को रोका जाना चाहिए। बेईमान व्यापारी बिहार में 1200 रुपये प्रति क्विंटल में धान खरीदकर और पंजाब व हरियाणा ले जाकर सरकार द्वारा घोषित एमएसपी दर पर इसे बेच, व्यवस्था को खुलेआम धोखा देने के लिए जाने जाते हैं। प्रति क्विंटल परिवहन शुल्क घटने के बावजूद वह लगभग 1000 रुपये का लाभ कमाते है। यह धोखाधड़ी केवल भारत के सभी राज्यों में गारंटीकृत खरीद और मंडियां खोलने से ही रुक सकती है। यदि कोई पार्टी या सरकार ऐसा नहीं करती है तो इसका स्पष्ट मतलब केवल यही है कि उसकी भ्रष्ट व्यापारियों के साथ संठ-गांठ है।
2014 के चुनाव अभियान में, भाजपा, मुख्य रूप से नरेंद्र मोदी ने छतों से चिल्ला चिल्ल- कर कहा था कि वह सी2+50% के हिसाब से एमएसपी देगी और ऐसा न करके उन्होंने किसानों को धोखा दिया है। 2023-24 में गेहूं के लिए घोषित एमएसपी 2125 रुपये और धान के लिए घोषित एमएसपी 2183 रुपये प्रति क्विंटल था, जिसकी गणना लगभग ए2+ऍफ़एल लागत पर की गई थी। ए2 लगाई गई लागत है, अर्थात किसान द्वारा बीज और सिंचाई सहित अन्य इनपुट के लिए कितना भुगतान किया गया है। एफएल प्रति फसल के मौसम में केवल 8 दिनों के काम के लिए पारिवारिक श्रम की अनुमानित लागत है। दूसरी ओर सी2 व्यापक लागत है, जिस में भूमि किराया, ट्रैक्टर और अन्य सहित कृषि उपकरणों के मूल्यह्रास, पूर्ण श्रम लागत एवं निवेशित पूंजी पर ब्याज को भी शामिल किया जाता है।
यदि एमएसपी सी2 + 50% पर घोषित किया जाता है तो घोषित कीमतें लगभग 30% बढ़ जाएंगी, जिसका अर्थ है कि गेहूं के लिए एमएसपी 2762 रुपये प्रति क्विंटल और धान के लिए 2838 रुपये प्रति क्विंटल होगा। इस लिहाज धान के लिए एमएसपी 683.5 रुपये प्रति क्विंटल कम है और धान की औसत उत्पादकता 25 क्विंटल प्रति एकड़ को ध्यान में रखते हुए- यानी 25 को 683.5 रुपये से गुणा किया जाए तो, पंजाब जहां मंडी प्रणाली मौजूद है वहां के एक किसान को प्रति एकड़ होने वाला 17075 रुपये है। यह मानते हुए कि किसान प्रति वर्ष दो फसलें लेता है, तो प्रति एकड़ वार्षिक नुकसान 34150 रुपये है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में जहां कोई मंडी व्यवस्था नहीं है, वहां किसान को प्रति क्विंटल मात्र 1400 रुपये मिलते हैं। यानी सी2+50% के हिसाब से जो एमएसपी 2866.5 रुपये होगा उस से 1466 रुपये कम। 25 क्विंटल प्रति एकड़ पर घाटा होता 36662.50 रुपये और प्रति वर्ष दो फसलों को मिला कर घाटा 73325 रुपये प्रति एकड़ प्रति वर्ष होगा।
भारत सरकार दुर्भावनापूर्ण ढंग से बहस कर रही है और लोगों को बेवकूफ बना रही है कि सी2+50% के अनुसार एमएसपी संभव नहीं है। हालाँकि, 2023 में छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व तेलंगाना में धान के लिए 3100 रुपये प्रति क्विंटल तथा राजस्थान और मध्य प्रदेश में गेहूं के लिए 2700 रुपये प्रति क्विंटल का वादा किया था। यह वादा C2+50% के आसपास या उससे भी अधिक था। यह स्पष्ट है कि भाजपा एक पार्टी के रूप में लोगों और देश को बरगला रही है।
बीज, खाद, कीटनाशक, पंप सेट, ट्रैक्टर और अन्य उपकरण व डीजल और बिजली बेचने वाली कंपनियां पूर्व निर्धारित कीमतों पर अपने उत्पाद बेचकर अप्रत्याशित लाभ कमाती हैं। सरकार कृषि उपकरणों पर सबसे ज्यादा 28% जीएसटी भी वसूलती है। यदि जीएसटी और इनपुट लागत कम हो जाते है तो खेती की लागत कम होने से सी2+50% मूल्य भी कम हो जाएगा। एसकेएम इनपुट लागत में कमी, जीएसटी को समाप्त करने और खेती के लिए मुफ्त बिजली के साथ-साथ प्रीपेड मीटर पर प्रतिबंध सहित ग्रामीण घरों और दुकानों के लिए 300 यूनिट बिजली मुफ्त करने की मांग कर रहा है।
जबकि मोदी सरकार लोगों से झूठ बोलते हैं कि गारंटीकृत खरीद के साथ सभी फसलों के लिए एमएसपी पर लागत का बोझ लगभग 15 लाख करोड़ रुपये होगा। अर्थशास्त्रियों के विभिन्न अध्ययनों ने यह आंकड़ा केवल 2.5 लाख करोड़ रुपये से 36,000 करोड़ रुपये के बीच बताया है। मार्केटिंग वर्ष 2023 के लिए क्रिसिल मार्केटिंग इंटेलिजेंस एंड एनालिटिक ने केवल 23 फसलों का आंकड़ा 21,000 करोड़ रुपये रखा है। सरकार का तर्क पूरी तरह से ग़लत है क्योंकि उसे सारी उपज नहीं खरीदनी पड़ती। लगभग 80% कृषि उपज सीधे बाज़ार में जाती है। यदि एमएसपी बढ़ाया जाता है, तो फसलों की न्यूनतम कीमत बढ़ जाएगी और किसानों को लाभ होगा। सरकार को केवल तभी खरीद करनी होती है जब किसी क्षेत्र में किसी फसल की कीमतें गिर जाएगी। साथ ही उसे अपने एनएफएसपी या पीडीएस के लिए भी खरीदारी करनी होगी जो उसका सामाजिक दायित्व है। वास्तविक प्रभाव बड़े व्यापारियों और कंपनियों के अप्रत्याशित लाभ में गिरावट पर होगी। जो लाभ कम एमएसपी और सरकारी खरीद समर्थन के अभाव के कारण कीमतें बहुत कमी के कारण होता हैं। सरकार झूठ बोल रही है क्योंकि वह नहीं चाहती कि किसानों को फायदा हो, वह बल्कि बड़े व्यापारियों और कॉर्पोरेट कंपनियों के लिए मुनाफाखोरी की सुविधा प्रदान करना चाहती है। ऐसा तभी हो सकता है जब इनपुट साधन ऊंचे दाम पर बिकें और किसान सस्ते में उपज बेचे।
किसान नेताओं का कहना है, कि एमएसपी पर पूरी बहस किसानों की आय बढ़ाने और लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाकर भारतीय बाजारों को फिर से जीवंत करने के बारे में ही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन एवं अन्य ऑनलाइन सेवाओं की बढ़ती लागत के कारण किसान और उनका परिवार केवल कृषि आय पर जीवित नहीं रह सकते। एक एकड़ खेत, उचित एमएसपी पर भी प्रति फसल 60,000 रुपये का ही लाभ दे सकता है, जो मात्र 5000 रुपये प्रति माह है और इसलिए ही किसानों की अतिरिक्त आय होनी जरुरी है। यह तभी हो सकता है जब खरीद, प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन के एक तंत्र के माध्यम से सभी कृषि वस्तुओं का भंडारण एवं विपणन उत्पादक सहकारी समितियों और सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ गैर-कॉर्पोरेट निजी क्षेत्र द्वारा किया जाए। बहुराष्ट्रीय और बड़ी कंपनियाँ मोदी सरकार के सहयोग के ज़रिये, भारी मुनाफाखोरी के लिए इस आकर्षक क्षेत्र पर नजर गड़ाए हुए हैं । केंद्रीय बजट 2024-25 में “कंपनियों द्वारा फसल कटाई के बाद निवेश” का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में यह प्रति वर्ष 30,000 करोड़ रुपये का बाजार है और कुछ वर्षों में इसके 2.1 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ने की उम्मीद है। कृषि-उद्योग के इस बाजार को बड़ी निजी कंपनियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से किसानों और मजदूरों के लिए बचाए जाने की जरुरत है। इससे पर सरकार पर खरीद का बोझ भी हल हो जाएगा। यदि किसान अपनी उपज का प्रसंस्करण करेंगे, तो सरकार को खरीदना नहीं पड़ेगा और इससे रोजगार पैदा हो सकता है साथ ही सरकार का कर राजस्व भी बढ़ सकता है।