उच्चतम न्यायालय ने झारखंड सरकार द्वारा राज्य उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ दायर मामला बंद कर दिया

नई दिल्ली/रांची
उच्चतम न्यायालय ने झारखंड सरकार द्वारा राज्य उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ दायर मामला बंद कर दिया, जिसमें रामनवमी जुलूस जैसे धार्मिक आयोजनों के दौरान राज्य की विद्युत वितरण कंपनी के बिजली आपूर्ति में कटौती करने पर रोक लगा दी गई थी।

त्योहारों पर बिजली कटौती पर रोक वाले HC आदेश के खिलाफ दायर की थी याचिका
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों पर गौर किया कि राज्य के अधिकारियों ने उसके निर्देशों का पालन किया है कि इस साल रामनवमी के दौरान न्यूनतम अवधि के लिए बिजली कटौती की जाए। सिब्बल ने यह भी कहा कि अस्पतालों को बिजली आपूर्ति में कोई व्यवधान नहीं होने देने के शीर्ष न्यायालय के निर्देश का भी पालन किया गया है। शीर्ष अदालत ने सिब्बल की दलीलों पर गौर किया कि अनुपालन हलफनामा भी दाखिल किया जाएगा। उसने 3 अप्रैल के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर कार्यवाही बंद कर दी।

उच्च न्यायालय ने स्वत: मामले का लिया था संज्ञान
उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले में झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड (जेबीवीएनएल) और अन्य अधिकारियों को राज्य में धार्मिक अवसरों पर बिजली आपूर्ति में कटौती करने से रोका था। शीर्ष अदालत ने 4 अप्रैल को राज्य सरकार की याचिका पर तत्काल सुनवाई की और उच्च न्यायालय के आदेश को संशोधित करते हुए राहत प्रदान की। उसने जेबीवीएनएल को बिजली के करंट से बचने के लिए रामनवमी जुलूस के मार्गों पर बिजली की आपूर्ति में कटौती करने की अनुमति दी। उसने राज्य सरकार की इस दलील पर गौर किया कि बिजली के झटके और उसके बाद होने वाली भगदड़ से बचने के लिए ऐसे जुलूसों के दौरान बिजली की आपूर्ति में कटौती करने की प्रथा दो दशकों से अधिक समय से जारी है। उसने कहा कि अप्रैल 2000 में एक धार्मिक जुलूस के दौरान 28 लोगों की करंट लगने से मौत हो गई थी। पीठ ने राज्य सरकार से बिजली कटौती को न्यूनतम अवधि तक सीमित रखने और इसे केवल जुलूस के मार्गों तक ही सीमित रखने को कहा था। रामनवमी 6 अप्रैल को मनाई गई। गत एक अप्रैल को सरहुल उत्सव के दौरान रांची में बिजली कटौती की शिकायतों का स्वत: संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय ने यह आदेश पारित किया। 

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